पांडवों की माता कुंती के 10 रहस्य (कुंती की कहानी)

दोस्तो महाभारत महाकाब्य मैं आपने पांडवों की माता कुंती का नाम तो सुना ही होगा। कुंती एक अद्भुत महिला थीं। पति की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने पुत्रों को हस्तिनापुर में प्रवेश करवाकर गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा दिलवाई, और अंत में उन्हें राज्य का अधिकार दिलवाने के लिए प्रेरित किया, यह सब जानना अद्भुत है। एक स्त्री के संघर्ष की कहानी में द्रौपदी का नाम तो लिया जाता है, लेकिन कुंती की कम ही चर्चा होती है। आज की वीडियो मैं हम पांडवों की माता कुंती के बारे में 10 रहस्य बताएँगे, जिन्हें आप शायद ही जानते होंगे। आओ जानते हैं कुंती के बारे में ऐसे कौन से 10 रहस्य हैं।

Secrets of Kunti in Mahabharat Epic

1. कुंती के माता पिता कौन थे?

यदुवंशी राजा शूरसेन की पृथा नामक कन्या और वसुदेव नामक एक पुत्र था। पृथा नामक कन्या को राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया। कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रखा। इस तरह पृथा अर्थात कुंती अपने असली माता पिता से दूर रही। जैसे दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को अंगदेश के राजा रोमपद को गोद दे दिया था।

2. कुंती कृष्ण की बुआ कैसे हुयी?

वसुदेव का विवाह कंस की बहन देवकी से हुआ। देवकी से श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। इस तरह कुंती श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की बहन और भगवान कृष्ण की बुआ थीं। यही कारण भी था कि भगवान श्रीकृष्ण ने कुंती का हर कदम पर साथ दिया था। श्रीकृष्‍ण और कुंती में एक दूसरा रिश्ता भी था। जब अर्जुन ने श्रीकृष्‍ण की बहन सुभद्रा से विवाह किया तो वे आपस में जीजा-साले बन गए।

3. कुंती का विवाह कैसे हुआ?

कुंती जब विवाह योग्य हुई तो उसका स्वंवर किया गया। स्वयंवर-सभा में कई राजा और राजकुमारों ने भाग लिया जिसमें हस्तिनापुर के राजा पाण्डु भी थे। कुंती ने पाण्डु को जयमाला पहनाकर पति रूप से स्वीकार कर लिया। कुंती का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहा। एक बार आखेट के दौरान पाण्डु हिरण समझकर मैथुनरत एक ऋषि को मार देते हैं। वे ऋषि मरते वक्त पांडु को शाप देते हैं कि तुम भी मेरी तरह मरोगे, जब तुम मैथुनरत रहोगे। इस शाप के चलते पांडु अपनी पत्नियों के साथ जंगल चले जाते हैं। पांडु की दो पत्नियां कुंती और माद्री थीं।

4. पांडवों का जन्म कैसे हुआ?

जंगल में वे संन्यासियों का जीवन जीने लगते हैं, लेकिन पांडु इस बात से दुखी रहते हैं कि उनकी कोई संतान नहीं है और वे कुंती को समझाने का प्रयत्न करते हैं, कि उसे किसी ऋषि के साथ समागम करके संतान उत्पन्न करनी चाहिए। कुंती इससे इंकार करके वह अपने वरदान के बारे में बताती है। तब पांडु की अनुमति से कुंती धर्मराज का आह्‍वान करती है। इससे युधिष्ठिर का जन्म होता है। फिर क्रम से वह इंद्र से अर्जुन और पवनदेव से भीम को प्राप्त करती है। अंत में कुंती माद्री को भी वह मंत्र सिखा देती है जिसे दुर्वासा ने दिया था। तब माद्री दो अश्‍विन कुमारों का आह्‍वान करती है जिससे उन्हें नकुल और सहदेव नामक दो पुत्रों की प्राप्ति होती है।

5. पाण्डु की मृत्यु कैसे हुयी?

एक दिन राजा पांडु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यंत रमणीक था और शीतल-मंद-सुगंधित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पांडु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन में प्रवृत हुए ही थे कि शापवश उनकी मृत्यु हो गई। कहते हैं कि माद्री उनके साथ सती हो जाती है। अब कुंती के समक्ष पांच पुत्रों के पालन-पोषण का संकट खड़ा हो जाता है। बस यहीं से कुंती के जीवन का नया संघर्ष प्रारंभ होता है।

6. पाण्डु की मृत्यु के बाद कुंती ने क्या किया?

अपने पति की मृत्यु के बाद कुंती ने मायके की सुरक्षित जगह पर जाने के बजाय ससुराल की असुरक्षित जगह को चुना। पांच पुत्रों के भविष्य और पालन-पोषण के निमित्त उसने हस्तिनापुर का रुख किया, जोकि उसके जीवन का एक बहुत ही कठिन निर्णय और समय था। कुंती ने वहां पहुंचकर अपने पति पांडु के सभी हितेशियों से संपर्क कर उनका समर्थन जुटाया। सभी के सहयोग से कुंती आखिरकार राजमहल में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गई।

7. पांडवों सहित लाक्षागृह से कैसे बची?

शकुनि और दुर्योधन ने छल से एक बार कुंती और पांडवों के वारणावत में लाक्षागृह में रुकवा दिया। लाक्षागृह अर्थात लाख से बना घर। योजना के अनुसार रात में इस घर में आग लगाने की योजना थी। लेकिन जब विदुर को इस षड़यंत्र का पता चला तो उन्होंने युधिष्‍ठिर तक यह सूचना पहुंचाई। तब पांडव एक सुरंग बनाकर वहां से बच निकले थे।

8. कुंती के कारण द्रौपदी बनी पांचों पांडवों की पत्नी: –

पांचों पांडव एक कुम्हार के घर में रहा करते थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन-यापन करते थे। ऐसे में भिक्षाटन के दौरान उन्हें द्रौपदी के स्वयंवर की सूचना मिली। वे भी उस स्वयंवर प्रतियोगिता में शामिल हुए और उन्होंने द्रौपदी को जीत लिया। द्रौपदी को जीत कर वे जब घर लाए तो कुंती ने बगैर देखे ही कह दिया कि जो भी लाए हो आपस में बांट लो। यह सुनकर पांडवों को बड़ा आश्चर्य हुआ परन्तु माता की आज्ञा मानकर पांचों पांडवों ने द्रोपदी को पत्नी रूप मैं स्वीकार कर लिया।

9. कुंती ने कर्ण से क्या माँगा?

एक बार कुंती कर्ण के पास गई और उससे पांडवों की ओर से लड़ने का आग्रह करने लगी। कुंती के लाख समझाने पर भी कर्ण नहीं माने और कहा कि जिनके साथ मैंने अब तक का अपना सारा जीवन बिताया उसके साथ मैं विश्‍वासघात नहीं कर सकता। पर ‘माते, तुम जानती हो कि कर्ण के यहां याचक बनकर आया कोई भी खाली हाथ नहीं जाता, अत: मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अर्जुन को छोड़कर मैं अपने अन्य भाइयों पर शस्त्र नहीं उठाऊंगा।

10. कैसे हुयी कुंती की मृत्यु?:-

महाभारत युद्ध के लगभग 15 साल बाद परिवार के तीन वरिष्ठ गांधारी, कुंती और धृतराष्ट्र वन की ओर प्रस्थान करते हैं। संजय भी उनके साथ होते हैं। करीब 3 साल तक गंगा किनारे एक घने वन में बनी छोटी सी कुटिया में सभी रहते हैं। एक दिन की बात है धृतराष्ट्र गंगा में स्नान करने के लिए जाते हैं और उनके जाते ही जंगल में आग लग जाती है, जिसकी वजह गांधारी, कुंती और संजय को कुटिया छोड़नी पड़ती है। वे सभी धृतराष्ट्र के पास आते हैं, ये देखने कि कहीं उन्हें तो कोई खतरा नहीं है।

संजय उन सभी को जंगल से चलने के लिए कहता हैं, क्योंकि पूरा जंगल आग से जल रहा था। लेकिन धृतराष्ट्र उन्हें कहता है कि यही वो घड़ी है जब उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। तीनों लोग वहीं रुक जाते हैं और उनका शरीर उस आग में झुलस जाता है। संजय उन्हें छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान करते हैं जहां वे एक संन्यासी की तरह रहते हैं। इस तरह एक साल बाद नारद मुनि आकर युधिष्ठिर को उनके परिवारजनों की मृत्यु का दुखद समाचार देते हैं। युधिष्ठिर वहां जाकर उनके अंतिम संस्कार का क्रियाकर्म कर, पिंडदान आदि कर्म करते हैं।

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Updated: August 8, 2024 — 12:06 pm

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