दोस्तो हिंदू धार्मिक शास्त्रों में भगवान भोलेनाथ की महिमा का काफी वर्णन मिलता है। मान्यता है कि त्रिदेवों में से एक भगवान शिव अपने भक्तों की पुकार बड़ी जल्दी सुन लेते हैं और मनवांछित फल देते हैं। वहीं ज्योतिष अनुसार भगवान शिव की पूजा के कई नए नियम भी बताए गए हैं। जहां एक तरफ भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्तजन शिवलिंग पर दूध, दही, चंदन, शहद, घी, केसर और जल आदि अर्पित करते हैं। वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग पर तुलसी के पत्ते चढ़ाना वर्जित माना गया है। लेकिन शायद ही कुछ लोग इस बात को जानते होंगे। ऐसे में आज हम आपको इसके पीछे की एक पौराणिक कथा बताएंगे, कि आखिर महादेव को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती है?
दोस्तो, पौराणिक कथा के अनुसार पूर्व जन्म में तुलसी का नाम वृंदा था। वृंदा, जलंधर नाम के राक्षस की पत्नी थी जिसका जन्म शिव जी के अंश के रूप में हुआ था। जालंधर राक्षस भगवान शिव का अंश होने के बावजूद भी उनका दुश्मन था। उसे अपनी वीरता पर बड़ा अभिमान था। भगवान शिव का शत्रु होने से वह महादेव से युद्ध करके उनका स्थान प्राप्त करना चाहता था। माना जाता है कि अमर होने के लिए ही उसने वृंदा से विवाह किया था। वृंदा ने पूरी जिदंगी पतिव्रता धर्म का पालन किया। इस कारण उसे सबसे पवित्र माना जाता है। जालंधर को विष्णु जी के कवच और वृंदा के पतिव्रत धर्म की वजह से अमर होने का वरदान मिला हुआ था.
भगवान शिव को तुलसी क्यों नहीं चढ़ाते?
मगर राक्षस जाति का होने से जालंधर देवताओं पर राज जमाना चाहता था। इसलिए उसने शिव जी को युद्ध करने की चुनौती दी। मगर वृंदा के पतिव्रता होने के कारण उसे मार पाना मुश्किल हो रहा था। इसके चलते भगवान शिव और विष्णु जी ने उसे मारने के लिए एक उपाय सोचा। सबसे पहले तो भगवान विष्णु ने जालंधर से कवच ले लिया। उसके बाद जालंधर की अनुपस्थिति में वृंदा की पवित्रता को भंग करने के लिए उनके महल में जालंधर का रूप धारण कर पहुंचे. इस तरह वृंदा का पति धर्म भंग होते ही जालंधर का अमरतत्व का वरदान भी खत्म हो गया। और भगवान शिव ने उसे मार दिया। जब वृंदा को इस बात का पता चला कि उससे धोखा हुआ है, तो उसने क्रोध में आकर भगवान शिव को श्राप दिया, कि उनकी पूजा में कभी भी तुलसी की पत्तियां इस्तेमाल नहीं की जाएंगी, और उन्होंने विष्णु जी को श्राप दिया कि आप पत्थर के बन जाएंगे।
उस समय विष्णु जी ने वृंदा यानी तुलसी को बताया कि वो उसका जालंधर राक्षस से बचाव कर रहे थे। विष्णु जी ने भी वृंदा को श्राप दिया कि वो लकड़ी की बन जाए। विष्णु जी के श्राप के बाद वृंदा कालांतर में तुलसी का पौधा बन गईं। कहा जाता है कि तुलसी श्रापित हैं, और शिव जी द्वारा उनके पति का वध हुआ है, इसलिए शिव पूजन में तुलसी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। शिव की पूजा में तुलसी के अलावा शंख, नारियल का पानी, हल्दी, कनेर, कमल, लाल रंग के फूल, केतकी और केवड़े के फूल भी नहीं चढ़ाए जाते हैं।
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