दोस्तो कैकेयी राजा दशरथ की तीन रानियों में सबसे ज्यादा प्रिय थी। उनके मांगे गए वरदानों के कारण ही प्रभु श्री राम को राज सुख त्याग कर चौदह वर्षों तक वनवास में रहना पड़ा। उनके मांगे गए वरादान से ही पूरी रामायण का आधार बनता है। रामायण के कैकेयी के पात्र से सभी को घृणा होती है, आज भी कोई अपनी पुत्री का नाम कैकेयी नहीं रखता है। इन्हीं वरदानों के कारण कैकेयी को हर किसी की उपेक्षा का पात्र बनना पड़ा। यहां तक की अपने पुत्र भरत से भी कटु वचन सुनने पड़े। लेकिन क्या कैकेयी ने अपने पुत्र को राज्य मिलने के लालच या मंथरा के बहकावे में आकर ये वरदान मांगे थे, क्या वह वाकई निंदा का पात्र थी या राम को वनवास भेजने के पीछे कोई और कारण था। आइये मिलकर जानते हैं।
दोस्तो, कैकेयी विवाह से पहले दुर्वासा ऋषि की सेवा किया करती थी। जिसके फलस्वरुप दुर्वासा ऋषि के वरदान से उनका एक हाथ बज्र के समान हो गया था। साथ ही दुर्वासा ऋषि ने उन्हें वरदान दिया की स्वयं भगवान तुम्हारी गोद में खेलेंगे। कैकेयी का विवाह राजा दशरथ से हो गया। जब एक बार देवों और असुरों में युद्ध हुआ तो देवराज इंद्र ने राजा दशरथ को सहायता के लिए बुलाया, रानी कैकेयी भी उस समय सारथी बनकर राजा दशरथ के साथ गई।
युद्ध भूमि में जब रथ का कीला निकल गया और राजा दशरथ का रथ लड़खड़ाने लगा तो, कैकेयी ने अपने हाथ को कीले की जगह लगाकर दशरथ के प्राणों की रक्षा की, जिसके बाद राजा दशरथ ने कैकेयी से दो वरदान मांगने को कहा. लेकिन कैकेयी ने यह कहकर टाल दिया कि समय आने पर वे वरदान मांग लेंगी। जब समय आया तो उन्होंने दो वरदान मांगे, एक तो प्रभु श्री राम के वनवास का दूसरा कि उनके पुत्र को गद्दी पर बिठाया जाए, इससे सभी को लगा कि ये सब कैकेयी ने मंथरा के बहकावे और पुत्र को राज मिलने के लालच में किया ।
ये तो बात हुई कैकेयी के वरदान मांगने की जिसके कारण लोग उनसे घृणा करते हैं. लेकिन इसके पीछे कुछ और वजह भी थी। कैकेयी राजा अश्वपति की बेटी थी,और श्रवण कुमार के पिता रत्नऋषि राजा अश्वपति के राजपुरोहित थे, और रत्नऋषि ने ही कैकेयी को सभी शास्त्र वेद पुराण की शिक्षा दी थी। उन्होंने कैकेयी को बताया कि राजा दशरथ की कोई संतान राज गद्दी पर नहीं बैठ पायेगी. और साथ ही ज्योतिष गणना के आधार पर बताया कि दशरथ की मृत्यु के पश्चात, यदि चौदह वर्ष के दौरान कोई संतान गद्दी पर बैठ भी गया तो रघुवंश का नाश हो जाएगा। कैकेयी ने इस बात को अपने अंदर आत्मसात कर लिया।
कैकेयी प्रभु श्री राम से बहुत प्रेम करती थी। लेकिन राजा दशरथ के हाथों बाण लगने के कारण श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद परिस्थितियों वश पुत्र वियोग में विलाप करते हुए श्रवण कुमार के माता-पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया कि, जिस तरह से वे पुत्र के वियोग में प्राण त्याग रहें हैं, उसी तरह राजा दशरथ की मृत्यु भी पुत्र वियोग में होगी। यह बाद कैकेयी भलिभांति जानती थी। प्रभु श्री राम राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे। राजा दशरथ की मृत्यु पुत्र वियोग में होने का मतलब था, कि राम की मृत्यु. कैकेयी अपने प्रिय पुत्र को खोना नहीं चाहती थी इसलिए उन्होंने राम के लिए चौदह
वर्षों का वनवास मांग लिया. साथ ही कैकेयी नहीं चाहती थी कि उनका प्रिय पुत्र रघुवंश के नाश का कारण बने. और उन्होंने यह वरदान मांगा कि उनके पुत्र को राज्य दिया जाए। सभी की भलाई के लिए कैकेयी ने अपने पुत्र की घृणा को भी स्वीकार कर लिया। इसके अलावा कैकेयी के चरित्र के संदर्भ में कोई राय बनाने के पूर्व, देवताओं और सरस्वती की भूमिका पर भी तो विचार किया जाना चाहिए। यह प्रसंग रामायण का थोड़ा भी ज्ञान रखने वाले सबको ज्ञात है, इसलिए दोहराने की आवश्यकता नहीं। ऐसी परिस्थिति से घिर कर ही तो कैकेयी को ऐसे दो वरदान मांगने पड़े, जिनके चलते वह हर काल और युग में एक कलंकिनी के रुप मे ही परिभाषित होती रही। अपने जिस पुत्र भरत के लिए राज्य मांगा उसी पुत्र से कैकेयी को कितनी लांछना भोगनी पड़ी.
भरत ने अपनी माता के प्रति जैसे कुवचन, “पापिनि सबहिं भांति कुल नासा” कहे उनको भी कैकेयी रघुवंश की सुरक्षा के लिए सहन कर गई। भरत ने इस चौपाई में तो एक मां के प्रति वांछित किसी मर्यादा का ख्याल नहीं रखा.
“जब तैं कुमति कुमत जियँ ठयऊ, खंड खंड होई हृदउ न गयऊ ।।
बर मागत मन भइ नहिं पीरा, गरि न जीह मुहँ परेउ न कीरा ।।”
इन शब्दों में भरतजी कैकेयी की घोरतम निंदा करते हैं। भगवान राम ने भरतजी को चित्रकूट में कैकेयी की इस तरह कठोरतम निंदा करने रोका, तो भरतजी ने कहा कि, मैं अकेला कैकेयी की निंदा नहीं कर रहा हूं बल्कि ‘जननी कुमति जगतु सबु साखी’’ यहां तक कि निषादराज की दृष्टि में भी कैकेयी का चरित्र भी ऐसा ही है. लेकिन राम इस तरह के किसी मत से सहमत नहीं जान पड़ते।
राम कहते हैं “दोसु देहिं जननिहि जड़ तेई , जिन्ह गुर साधु सभा नहिं सेई।।”
मानस का गहन अध्ययन करने पर यही कहना पड़ता है कि, कैकेयी निंदनीया है या वंदनीया इस पर मंतव्य देना कोई आसान नहीं है। क्योंकि कैकेयी की प्रसंशा करने वाला तुलसी का पात्र इतना महान है कि अनुचित नहीं माना जा सकता, और वह पात्र है मानस का महा नायक राम। दूसरी ओर कैकेयी की निंदा करने वाले हैं भरत, और उनका चरित्र भी इस तरह चित्रित किया गया है कि हम यह नहीं कह सकते कि वे गलत हैं।
कुल मिला कर रामायण में परिस्थितियां इस तरह रची गई है कि, तुलसी ने मूर्त रुप से भले ही निंदनीया के रुप में प्रस्तुत किया है. लेकिन कैकेयी के दो वरदान के परिणामों पर जाए तो वे वंदनीया ही हैं।
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