नवरात्रि के पहले दिन (मां शैलपुत्री) की पूजा विधि एवं व्रत कथा

दोस्तो हिन्दू धर्म मैं नवरात्री अर्थात नव दुर्गा पूजा का बहुत महत्व है। सनातन धर्म मैं साल मैं चार बार नवरात्री मनाई जाती हैं। इनमे से दो गुप्त नवरात्री और दो मुख्य नवरात्री होती हैं। मुख्य नवरात्री चैत्र और अश्विन माह मैं मनाई जाती हैं। इन नवरातों मैं माता के अलग – अलग नौ स्वरूपों की आराधना करने का विधान है। नवरात्री के प्रथम दिवस माता के शैलपुत्री स्वरुप की पूजा होती है। माता ने पर्वतराज हिमालय के यहाँ जन्म लिया था। हिमालय को शैल भी कहा जाता है और हिमालय की पुत्री होने के कारण माता को शैलपुत्री कहा गया। माता शैलपुत्री को वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। माता शैलपुत्री की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं को सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती है।

Maa Shailputri devi Mantra

मां शैलपुत्री का स्वरुप एवं वाहन:-

मां दुर्गाजी का प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री देवी का है। माता का यह स्वरूप बेहत शांत और सरल है। माता की दो भुजाएं हैं जिनमें से एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमल शोभायमान है। माता शैलपुत्री नंदी नामक बैल पर सवार है, इसीलिए इन्हें वृषोरूढ़ा भी कहा जाता है। मां अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं, और साधक का मूलाधार चक्र जागृत होने में सहायता मिलती है।

नवरात्रि के पहले दिन (माँ शैलपुत्री) की कथा:-

हिन्दू पुराणों के अनुशार एक बार माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ मैं दक्ष ने अपनी सभी पुत्रियों और जमाताओं सहित सभी देवताओं को आमत्रित किया। किन्तु भगवान शिव के साथ वैर होने के कारण भगवान महादेव और अपनी पुत्री सती को नहीं बुलाया। माता सती को जब इस यज्ञ का समाचार मिला तो वह भी यज्ञ मैं जाने के लिए जिद करने लगीं। भगवान शिव के बहुत समझाने पर भी जब नहीं मानी तो भगवान शिव ने उन्हें नंदी के साथ यज्ञ मैं शामिल होने के लिए विदा कर दिया।

माता सती जब अपने पिता के घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बाकी किसी ने भी उनसे ठीक से बात नहीं की। बल्कि पिता दक्ष ने भगवान शिव के प्रति कुछ अपमान जनक बातें कहीं। जिनसे अपने पति का अपमान हुआ देख माता सती ने योगाग्नि से अपने आप को भस्म कर लिया। बाद मैं जब यह समाचार भगवान शिव को मिला तो वह बहुत क्रोधित हुए और गणों को भेजकर यज्ञ विध्वंस कर दिया। माता सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। माता शैलपुत्री ने कड़ी तपस्या से भगवान को प्रसन्न किया और फिर से पति रूप मैं प्राप्त किया।

नवरात्रि के पहले दिन की पूजा विधि:-

माता के नवरातों की शुरुआत प्रथम दिवस घट स्थापना से होती है। सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, और फिर चौकी को गंगाजल से साफ करके मां दुर्गा की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। उसके बाद पूरे परिवार के साथ विधि विधान से कलश स्थापना करें। घट स्थापना के बाद मां शैलपुत्री का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। ध्यान रखें कि माता की पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। इसके बाद माता को कुमकुम और अक्षत लगाएं और सफेद, पीले या लाल फूल अर्पित करें। अब पांच देसी घी के दीपक जलाएं और माँ शैलपुत्री की कथा, दुर्गा चालीसा, अथवा दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। सबसे लास्ट मैं परिवार सहित माता की आरती करें और जयकारे लगाएं। माता को गाय के दूध से बनी चीजों का ही भोग लगाया जाता है। पंचामृत के अलावा आप देवी शैलपुत्री को खीर या दूध से बनी बर्फी का भोग लगा सकते हैं। इसके अलावा आप घी से बने हलवे का भी प्रसाद चढ़ा सकते हैं। मां शैलपुत्री का पसंदीदा रंग पीला है।

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्र ‘ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:’ का 108 बार जप करें। इसके अलावा

“या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।”
इस मंत्र का भी जप कर सकते हैं।

“अन्य महत्वपूर्ण कथाएं”
शिवपुराण उपाय CLICK HERE
रामायण की कहानियां CLICK HERE
महाभारत की कहानियां CLICK HERE
हमारा YOUTUBE चेंनल देखें CLICK HERE
Updated: February 13, 2025 — 4:50 pm

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *