दोस्तो महाभारत की कथा के एक महत्वपूर्ण पात्र बिदुर के बारे मैं कौन नहीं जानता। महात्मा विदुर धृतराष्ट और पाण्डु के छोटे भाई थे लेकिन एक दासी पुत्र होने की वजह से हस्तिनापुर की राजसभा मैं उन्हें बार बार बेइज्जत होना पड़ा। महात्मा विदुर पितामह भीष्म के शिष्य थे, साथ ही नीति और ज्ञान मैं अपने गुरु से भी दो कदम आगे थे। महात्मा विदुर के नीतिज्ञान के आगे हस्तिनापुर की राज सभा नतमस्तक रहती थी और कोई भी उनकी बात काट नहीं पाता था। श्री कृष्ण के परम भक्त महात्मा विदुर ने महाभारत के युद्ध मैं हिस्सा नहीं लिया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत के युद्ध के बाद विदुर की मृत्यु कैसे हुई? अगर नहीं तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ियेगा इस आर्टिकल मैं हम आपको बताएँगे कि विदुर की मृत्यु कैसे हुई?
विदुर ने श्री कृष्ण से क्या वरदान माँगा?
महात्मा विदुर ने अपने ही परिवार के बीच होने वाले महाभारत युद्ध को रोकने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह इसमें सफल न हो सके। महाभारत के युद्ध मैं मरने वाले एक ही परिवार के योद्धाओं को देखकर उन्हें बहुत आत्मग्लानि महसूस हो रही थी। इसलिए महाभारत युद्ध के बीच मैं ही वह एक दिन भगवान श्री कृष्ण से मिलने गए। महात्मा विदुर ने भगवान से कहा कि हे केशव मैं इस युद्ध की वजह से अपने अंदर बहुत आत्मग्लानि का अनुभव कर रहा हूँ। मैं इस पृथ्वी पर अपने शरीर का एक छोटा सा भी हिस्सा नहीं छोड़ना चाहता। इसलिए मेरी आपसे विनती है कि जब भी मेरी मृत्यु हो तो ना मुझे जलाया जाए, ना दफनाया जाए, और ना ही जल में प्रवाहित किया जाए। मेरी आपसे प्रार्थना है कि मेरी मृत्यु के बाद मेरे शरीर को आप अपने सुदर्शन चक्र मैं ही समाहित कर लेना। भगवान श्री कृष्ण ने विदुर कि प्राथना को स्वीकार कर लिया।
महाभारत के बाद महात्मा विदुर का क्या हुआ?
महाभारत के युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने तो धृतराष्ट्र, महारानी गांधारी और विदुर तीनों वन की और चले गए। एक दिन वन मैं आग लग जाने से महारानी गांधारी और धृतराष्ट की मृत्यु हो गयी। इसका समाचार जब युधिष्ठिर को मिला तो वह भाइयों सहित वन मैं पहुंच गए। युधिष्ठिर के साथ आये भगवान श्री कृष्ण को देखकर विदुर ने भी अपने प्राण त्याग दिए, और वे युधिष्ठिर में ही समाहित हो गए। यह देखकर युधिष्ठिर को बड़ा आश्चर्य हुआ तब भगवान श्री कृष्ण बोले की हे युधिष्ठिर, विदुर धर्मराज के अवतार थे, और तुम स्वयं धर्मराज हो इसलिए विदुर के प्राण तुममें समाहित हो गये। अब मैं विदुर को दिया हुआ वरदान, उनकी अंतिम इच्छा पूरी करूंगा।
इनकी अंतिम इच्छा थी कि मेरी मृत्यु हो तो ना मुझे जलाया जाए, ना दफनाया जाए, और ना ही जल में प्रवाहित किया जाए। बल्कि मेरी मृत्यु के बाद मेरे शरीर को आप अपने सुदर्शन चक्र मैं ही समाहित कर लेना। हे युधिष्ठिर, आज मैं उनकी अंतिम इच्छा पूरी करके विदुर को सुदर्शन चक्र मैं ही समाहित करूंगा। इस तरह श्री कृष्ण ने विदुर को सुदर्शन चक्र मैं ही समाहित कर लिया।
“अन्य महत्वपूर्ण कथाएं” | |
---|---|
शिवपुराण उपाय | CLICK HERE |
रामायण की कहानियां | CLICK HERE |
महाभारत की कहानियां | CLICK HERE |
हमारा YOUTUBE चेंनल देखें | CLICK HERE |