दोस्तो माता सीता जी के स्वयंवर की कथा तो आप सभी जानते ही होंगे। जनकपुर मैं होने वाले इस स्वयंवर मैं राजा जनक ने देश विदेश के सभी राजाओं को निमंत्रित किया था। साधु संत ऐसा कहते हैं कि इस स्वयंवर मैं रावण भी आया था, रावण ने भगवान शिव के धनुष को उठाने की कोशिस भी की थी, पर सफल नहीं हो पाया। परन्तु सवाल यह है कि राजा जनक ने इस स्वयंवर के लिए अयोध्या के महाराज दशरथ को क्यों नहीं बुलाया था? इसका कारण राजा जनक का अयोध्या से कोई वैर भाव नहीं था, अपितु पूर्व मैं हुई एक घटना थी। जिसके डर से राजा जनक ने सीता स्वयंवर का निमंत्रण अयोध्या नहीं भेजा था। राजा जनक को डर था कि कहीं फिर से वही हुआ तो क्या होगा? इस आर्टिकल मैं हम महाराज जनक के उसी डर और पूर्व मैं हुई घटना की कहानी सुनाएंगे।
राजा जनक ने सीता स्वयंवर का निमंत्रण अयोध्या क्यों नहीं भेजा?
दोस्तो, पौराणिक कथाओं के अनुसार जनकपुर मैं एक व्यक्ति की नयी नयी शादी हुई थी। शादी के बाद पहली बार बड़ा सज धज कर ससुराल जा रहा था। रास्ते मैं उसे दलदल मैं फसी हुई एक गाय दिखाई दी, उस गाय को देख कर उसके मन मैं एक बार तो गाय को उस दलदल से बाहर निकालने का विचार आया। पर दूसरे ही छड़ सोचने लगा कि कहीं मैं भी इसी दलदल मैं न फस जाऊं। वैसे भी इस गाय को निकालने के चक्कर मैं मेरे कपडे भी ख़राब हो जायेंगे, ऐसा सोचकर वह व्यक्ति गाय के ऊपर पैर रख कर उस दलदल को पार कर गया। और ससुराल को जाने लगा, तब गाय ने उसे श्राप दे दिया कि जिसके लिए तू मुझे इस हालत मैं छोड़कर जा रहा है, उसे ही देख नहीं पाएगा। अगर देखेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी । इतना कहते ही गाय की मृत्यु हो गयी।
ससुराल पहुंचकर वह व्यक्ति घर की तरफ पीठ करके दरवाजे के बाहर ही बैठ गया। ससुराल के लोगों की तमाम कोशिशों के बाद भी वह अंदर नहीं गया। इस पर उसकी पत्नी ने घर के बाहर आकर उससे अंदर चलने को कहा, लेकिन व्यक्ति ने शाप के डर से उसकी तरफ देखा भी नहीं। पत्नी ने इसका कारण पूछा तो उसने रास्ते की पूरी कहानी सुना दी। इसपर पत्नी ने कहा कि मैं पतिव्रता स्त्री हूं, आप मेरी तरफ देखो, मुझे कुछ भी नहीं होगा। पत्नी की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जैसे ही पत्नी की तरफ देखा, तो उसकी आंखों की रोशनी चली गई।
महाराज दशरथ ने एक सेविका को जनकपुर भेजा:-
अब दोनों पति – पत्नी राजा जनक के दरवार मैं पहुंचे, और राजा को पूरी कहानी कह सुनाई। इस पर राजा जनक ने सभा मैं उपस्थित पंडितों और ज्ञानी जनों से इसके समाधान का उपाय पूछा। तो ज्ञानी जनों ने कहा कि, हे राजन आपके राज्य के अतिरिक्त किसी अन्य राज्य की कोई पतिव्रता नारी, छलनी में गंगाजल लाकर उसकी आंखों पर छींटे लगाए, तो गौ-शाप से मुक्ति मिल जाएगी। जब यह सूचना अयोध्या पहुंची तो राजा दशरथ ने एक सेविका को बुलाकर उसके पतिव्रता होने के बारे मैं पूछा, तो उसने हाँ मैं सिर हिला दिया। राजा दशरथ ने उसी सेविका को जनकपुर भेज दिया।
जनकपुर मैं सेविका का बहुत स्वागत सत्कार हुआ। वह सेविका छलनी लेकर गंगा किनारे गई और प्रार्थना की कि हे गंगा मां, अगर मैं पूर्ण पतिव्रता हूं तो गंगाजल की एक बूंद भी नीचे नहीं गिरनी चाहिए। प्रार्थना करके उसने छलनी में गंगाजल भर लिया और राजदरबार पहुंच गई। और उस व्यक्ति की आँखों पर गंगाजल छिड़क दिया। गंगाजल के छींटे लगते ही उसकी रौशनी वापस आ गयी। राजा जनक ने उस सेविका को पुरुष्कार देकर विदा किया।
सीता स्वयंवर के समय राजा जनक को वही घटना याद आ गयी। तब राजा जनक ने सोचा कि कहीं पिछली वार की तरह महाराज दशरथ किसी सेवक या द्वारपाल को न भेज दें। अगर ऐसा हुआ तो वह तो धनुष को आसानी से उठा लेगा। ऐसे में राजकुमारी का विवाह किसी राजकुमार के बजाय सैनिक या द्वारपाल से हो जाएगा। इसी डर के कारण राजा जनक ने सीता स्वयंवर का निमंत्रण अयोध्या नहीं भेजा।
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