दोस्तो इस ब्रह्ममांड की पराशक्ति महामाया अर्थात शक्ति आराधना का सनातन संस्कृति मैं विशेष स्थान है। हिन्दू धर्म पुराणों के अनुसार इस ब्रह्ममांड की रचना देवी महामाया द्वारा ही की गयी है, और अंत मैं प्रलय काल के समय यह पूरा ब्रह्ममांड उन्ही मैं विलीन हो जाता है। तीनो प्रमुख देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन्ही परमेश्वरि महामाया से उत्पन्न हुए हैं। नवरात्रि के चतुर्थ दिवस माता के कूष्मांडा स्वरुप की आराधना का विधान है। जो भी भक्तजन देवी कुष्मांडा की पूजा, अर्चना सच्चे मन से करते हैं उन्हें आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। माँ कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और पूजा से ही प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इनके भक्तों के सभी शोकों और रोगों का नाश होता है और अंत समय मैं परमपद की प्राप्ति होती है।
माँ कूष्मांडा का स्वरुप और सवारी:-
पुराणों के अनुसार माता के चतुर्थ स्वरुप माँ कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं इसलिए इन्हे अष्टभुजा देवी कहा जाता है। माँ कुष्मांडा सात हाथों मैं क्रमशः कमंडल, धनुष बाण, चक्र, गदा, अमृतपूर्ण कलश, कमल पुष्प धारण करती हैं। माता के अष्टम हाथ मैं सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है।
माता कूष्मांडा शेर की सवारी करती हैं। पुराणों के अनुसार इनका निवास सूर्यमण्डल क भीतर लोक मैं माना गया है। ऐसा माना जाता है कि सूर्यलोक के भीतर रहने की क्षमता केवल माता कूष्मांडा मैं ही है। सूर्यलोक मैं निवास करने के कारण माता की कांति सूर्य की ही भांति दैवीप्यमान है। पुराणों के अनुसार श्रष्टि की सभी वस्तुओं और प्राणियों मैं इन्ही का तेज व्याप्त है।
माँ कूष्मांडा की कथा:-
हिन्दू धर्म पुराणों मैं वर्णित कथा के अनुसार श्रष्टि के प्रारम्भ मैं जब कुछ भी नहीं था केवल जल ही जल था तब माता महामाया ने श्रष्टि की रचना के लिए कूष्मांडा स्वरुप धारण किया। माता कूष्मांडा की इच्छा से ही तीनों प्रमुख देव ब्रह्मा, विष्णु और महेश प्रकट हुए। जिनमे से ब्रह्मा जी को श्रष्टि की रचना का कार्य सौंपा गया। भगवान विष्णु को श्रष्टि के पालन और महेश यानि भगवान शंकर को श्रष्टि के विनाश अर्थात प्रलय का कार्य सौंपा गया। इस श्रष्टि की आधारभूता होने के कारण ही ये आदिशक्ति या आदिस्वरूपा कहलायीं।
नवरात्र के चौथे दिन की पूजा विधि?
नवरात्रि के चौथे दिन माता के कूष्मांडा स्वरुप की पूजा – आराधना का विधान है। अष्टभुजा धारी माता कूष्मांडा अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और अपने भक्तो क सभी प्रकार के कष्टों का नाश करके परम सुख प्रदान करती हैं। माता कूष्मांडा को सफ़ेद रंग बहुत प्रिय है, इसलिए नवरात्रि क चौथे दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर सफ़ेद वस्त्र धारण करें। इसके बाद मंदिर में स्थापित कलश का पूजन करें और फिर मां दुर्गा की मूर्ति का पूजन करें। माँ कुष्मांडा को पीले रंग के फूल या चमेली का फूल अर्पित करना चाहिए।
माता को श्रृंगार में सिन्दूर, काजल, चूड़ियां, बिंदी, बिछिया, कंघी, दर्पण और पायल भी अर्पित कर सकते हैं। मां कुष्मांडा को मालपुआ का भोग लगाने की परंपरा है। पूजा के बाद माता की कथा और आरती करनी चाहिए। माँ कूष्मांडा को कुम्हड़े की बलि अतिप्रिय है। सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों को बहुत कम समय मैं ही माता की कृपा का अनुभव होने लगता है। माता कूष्मांडा अपने भक्तो को सुख – संमृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं।
नवरात्रि के चौथे दिन मां चंद्रघंटा को प्रसन्न करने के लिए उनके बीज मंत्र ‘ऊँ ऐं ह्री कूष्मांडा देव्यै नम:’ का 108 बार जाप कर सकते हैं। इसके अलावा
“या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।”
इस मंत्र का भी जप कर सकते हैं।
“अन्य महत्वपूर्ण कथाएं” | |
---|---|
शिवपुराण उपाय | CLICK HERE |
रामायण की कहानियां | CLICK HERE |
महाभारत की कहानियां | CLICK HERE |
हमारा YOUTUBE चेंनल देखें | CLICK HERE |