दोस्तो भगवान सूर्य और छाया के पुत्र शनिदेव को कर्मफल दाता अथवा न्यायाधीश माना जाता है। शनिदेव को नव ग्रहों मैं सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिदेव की महादशा जातक के जीवन मैं उथल-पुथल मचा देती है। शास्त्रों मैं दो प्रकार की शनि महादशा बताई गई है पहली शनि ढैय्या (इसकी अवधि ढाई साल होती है) और दूसरी साढ़ेसाती (इसकी अवधि साढ़े सात साल होती है)। शनि की महादशा को लेकर लोगों के मन मैं भ्रान्ति फैली हुई है कि शनिदेव कि महादशा मैं जातक को अपार कष्टों का सामना करना पड़ता है। शनि की महादशा से सभी लोग डरते है क्यों कि शनिदेव को अशुभ और दुख कारक माना जाता है केलिन यह सर्वदा सत्य नहीं है। नवग्रहों मैं केवल एक शनिदेव ही हैं जो प्राणी को मोक्ष दिला सकते हैं। सत्य तो यह है कि शनि देव प्राणी के कर्मानुशार उचित न्याय करते है और दंड या शुभ फल प्रदान करते हैं। शनिदेव केवल उन्ही लोगों को दण्डित या प्रताड़ित करते हैं जिनके कर्म अनुचित और दूसरों के लिए दुखदायी होते हैं।
शनिदेव के जन्म की कथा:-
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार शनिदेव का जन्म सूर्य भगवान की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से हुआ था। कहते हैं कि शनिदेव की माता छाया भगवान शिव की परम भक्त थी। जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तब भी छाया भगवान शिव कि तपस्या मैं इतनी मग्न थी कि उसे ठीक से खाने पीने का भो बोध नहीं रहा। घोर तपस्या मैं लीन रहने और ठीक से खाना न खाने की वजह से गर्भ मैं शनिदेव बहुत कमजोर हो गए और उनका श्याम वर्ण हो गया। शनिदेव के श्याम वर्ण को देखकर सूर्य देव ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया। तभी से शनिदेव अपने पिता सूर्यदेव से शत्रु का भाव रखने लगे थे। अपनी माता की तरह शनिदेव भी भगवान शिव की तपस्या करने लगे और अपनी साधना से भगवान शिव को प्रसन्न करके अपने पिता सूर्य की ही भांति शक्ति प्राप्त की। भगवान शंकर ने शनिदेव को वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों मैं तुम्हारा सर्वोच्च स्थान होगा और तुम कर्मफल दाता कहलाओगे।
शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति के उपाय:-
अगर आप पर शनि की महादशा (साढ़ेसाती या ढैय्या) चल रही है तो बिलकुल भी डरने की आवश्यकता नहीं है। शनि की महादशा हमेशा कष्ट कारक नहीं होती है। फिर भी शनि की महादशा से मुक्ति के लिए आप कुछ उपाय कर सकते हैं जो इस प्रकार हैं।
- Shani Pradosh Vrat Upay:- जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती या शनि की ढैय्या का प्रभाव चल रहा हो उन लोगों के लिए शनि प्रदोष का दिन बहुत खास है। शनि प्रदोष व्रत करने से घर में सुख समृद्धि और खुशहाली का आगमन होता है। साथ ही नवविवाहित साधक को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। अतः प्रदोष व्रत पर साधक को श्रद्धा भाव से भगवान शिव एवं शनि देव की पूजा करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि शनिप्रदोष का दिन शिव पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है। अगर कोई व्यक्ति लगातार 4 शनिप्रदोष करता है तो उसके जन्म जन्मांतर के पाप धूल जाते हैं साथ ही वह पितृऋण से भी मुक्त हो जाता है।
- एक लोटे में जल, दूध, गुड़ और काले तिल मिलाकर हर शनिवार को पीपल के मूल में चढ़ाने तथा ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र जपते हुए पीपल की ७ बार परिक्रमा करने से आर्थिक कष्ट दूर होता है। और शनि कि महादशा से मुक्ति मिलती है।
- हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से शनि कि महादशा और अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है।
- शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है।
- शनि की महादशा के दौरान गरीब, असहाय, घर के बड़े और महिलाओं का अपमान न करें। शनिवार के दिन काले तिल, वस्त्र और सरसों के तेल का दान करना चाहिए, वहीं रोजाना महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
- शनिदेव भगवान शिव और हनुमान जी के भक्त हैं इसलिए जो साधक भगवान शिव या हनुमान जी की श्रद्धा भाव से पूजा करता है उसके लिए शनिदेव की महादशा कष्ट कारक नहीं होती। जातक को शनि की महादशा के दौरान हनुमान चालीसा या सुन्दरकाण्ड का पाठ करना चाहिए।
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