दोस्तो महाभारत में अगर अर्जुन को नायक के तौर पर देखा जाता है, तो कर्ण को भी उनके बराबर का दर्जा दिया गया है। जिस तरह महाभारत में अर्जुन की वीर गाथाएं लिखी गई हैं, उसी तरह कर्ण की भी एक से बढ़कर एक गाथाएं देखने को मिल जाती हैं। लेकिन कर्ण को इतिहास में वह जगह नहीं मिली, जो उसके समकक्ष अन्य चरित्रों को मिलीं। सूर्यपुत्र होकर भी ता उम्र कर्ण सूतपुत्र कहलाए। महा पराक्रमी और महादानी होते हुए भी अधर्म का साथ देने का कलंक लेकर जिया और मरा। जिसे सत्कार की जगह दुत्कार और प्रेम की जगह अपमान मिला। लेकिन कर्ण का जीवन सिर्फ इतना ही नहीं था। इस वीर और धनुर्धारी कर्ण में एक प्रेमी भी था, जिसकी प्रेम कहानियां उसके पराक्रम की छाया में दबी रह गईं। आज की इस आर्टिकल के माध्यम से हम कर्ण की प्रेम कहानियों की चर्चा करेंगे, और बताएँगे की कौन और कैसी थीं कर्ण की पत्नियां?
सूर्यपुत्र कर्ण की प्रेम कहानियां और विवाह.
दोस्तो, कर्ण की प्रेम कहानी में सबसे अधिक चर्चा द्रौपदी से प्रेम की होती है। लेकिन, शास्त्रों में कहीं भी इस बात का ज़िक्र नहीं है, कि कर्ण और द्रौपदी एक-दूसरे से प्रेम करते थे। जब द्रौपदी का स्वयंवर रचा गया, तब अन्य राजाओं की तरह अंग राज कर्ण भी वहां पहुंचे। उसकी वीरता के बारे में सुनकर द्रौपदी उसकी तरफ आकर्षित जरूर हुईं, लेकिन कृष्ण को इसका पता चल गया। श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने कर्ण को सुतपुत्र कहते हुए स्वयंवर में भाग लेने से मना कर दिया। प्रेम का यह अंकुर फूटने से पहले ही दफन हो गया। इसके बाद द्रौपदी और कर्ण के प्रेम की बात कहीं नहीं आई।
सूर्य पुत्र को प्यार हुआ था दासी पद्मावती से, जो बाद में उनकी पत्नी बनीं। लेकिन कम ही जिक्र मिलता है कि कर्ण की एक और पत्नी थी, जिसे वृषाली के नाम से जाना जाता है। कर्ण का पहला विवाह वृषाली के साथ ही हुआ था। वृषाली दुर्योधन के सारथी सत्यसेन की कन्या थीं। कर्ण की मृत्यु के बाद वृषाली उनकी चिता पर सती हुई थीं। एक कहानी कर्ण की दूसरी पत्नी सुप्रिया के बारे में भी मिलती है। सुप्रिया दुर्योधन की पत्नी भानुमती की सहेली थीं। माना जाता है कि सुप्रिया को ही पद्मावती कहा जाता है। पद्मावती और अंसावरी से कर्ण के प्रेम की कहानी इस प्रकार है.
द्रौपदी के स्वयंवर में अपमानित होकर कर्ण अपने राज्य लौट रहे थे। इसी दौरान जंगल में कर्ण ने देखा कि, कुछ बदमाश दो सुंदरियों को घेरकर उनकी इज्जत से खेलने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें से एक राजा चित्रवत की पुत्री अंसावरी तो दूसरी उनकी दासी धूम सेन की पुत्री पद्मावती थी। दुराचारियों ने राजकुमारी अंसावरी पर हमला किया तो पद्मावती सामने खड़ी हो गई। तभी कर्ण पहुंचे और अपने बाणों से दुराचारियों को मार भगाया। परंतु, इसी बीच एक दुष्ट ने कर्ण के सिर पर वार कर दिया और वह मूर्छित हो गए। राजकुमारी अंसावरी भी बेहोश हुईं।
पद्मावती, कर्ण और अंसावरी को रथ में राजभवन ले गईं। अंसावरी को राजभवन छोड़कर कर्ण को पिता के घर ले गईं। पद्मावती के पिता ने वैद्य को बुलाया और उपचार के बाद कर्ण ठीक हो गए। कर्ण पास बैठी पद्मावती को देखते के देखते रह गए। दोनों मन ही मन एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। उधर, अंसावरी ने पिता को कर्ण की वीरता की कहानी सुनाई, तो महाराज चित्रवत का सैनिक उनका संदेश लेकर कर्ण के पास पहुंचा। कर्ण सैनिक के साथ चित्रवत के राजभवन गए जहां राजकुमारी अंसावरी ने उनका स्वागत किया।
महाराज चित्रवत कर्ण से कहते हैं कि आपने मेरी बेटी के प्राण बचाकर बड़ी कृपा की है। मेरी इच्छा है कि आप कुछ दिन रुककर मेरा आतिथ्य स्वीकार करें। कर्ण मान जाते हैं। कर्ण और राजकुमारी अंसावरी एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं। अंसावरी अपने मन की बात अपनी सखी व दासी पद्मावती को भी बताती हैं। हालांकि पद्मावती अपने प्रेम की बात छुपा जाती हैं। कुछ समय बीतने पर कर्ण, महाराज चित्रवत से राजकुमारी अंसावरी का हाथ मांगते हैं। यह सुनते ही राजा चित्रवत क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं, हे अंगराज कर्ण! मैं तुम्हारी वीरता का कायल हूं। लेकिन तुम्हारी और हमारी बराबरी नहीं। हम क्षत्रिय हैं और तुम सूत पुत्र हो, इसलिए मेरी पुत्री का विवाह तुमसे संभव नहीं है। कर्ण कहते हैं कि आपकी पुत्री भी मुझसे प्रेम करती है। लेकिन, जब अंसावरी को कर्ण के सूत पुत्र होने की बात पता चलती है, तो वह भी शादी से इनकार कर देती है। कर्ण इस अपमान से दुखी होकर अपने राज्य लौट जाते हैं।
कुछ समय बाद राजा चित्रवत अपनी पुत्री अंसावरी का स्वयंवर कराते हैं। भगवान सूर्य के कहने से कर्ण भी स्वयंवर में पहुंच जाते हैं। लेकिन, कर्ण को देखकर राजा उनका अपमान करते हैं। कर्ण कहते हैं कि हां, मैं सुत पूत्र हूं लेकिन सभी क्षत्रिय राजाओं को एक साथ युद्ध में हरा सकता हूं। कर्ण अपने बाणों से वहां उपस्थित सभी राजाओं समेत महाराज चित्रवत को भी सिंहासन से बांध देते हैं। सभी कर्ण से हार मान लेते हैं। इसके बाद महाराज चित्रवत पुत्री से विवाह के लिए तैयार हो जाते हैं, लेकिन जैसे ही राजकुमारी अंसावरी वरमाला लेकर कर्ण के गले में पहनाने का प्रयास करती हैं, कर्ण पीछे हट जाते हैं। अपमान की आग में जल रहे कर्ण कहते हैं, हे राजकुमारी! मैं तुम जैसी स्वार्थी से विवाह नहीं करना चाहता। मैं तो उससे विवाह करूंगा, जिसके मन में मेरे लिए निस्वार्थ प्रेम है। यह कहकर कर्ण पास खड़ी पद्मावती से पूछते हैं कि हे सूत कुमारी! क्या तुम्हारे मन में मेरे लिए प्रेम है? पद्मावती की स्वीकृति मिलने पर कर्ण उसे स्वीकार करते हैं। पद्मावती कर्ण के गले में वरमाला पहनाती है और उन्हें पति के रूप में वरण करती है। इस तरह कर्ण अंसावरी से अपमान का बदला लेते हुए उनकी दासी पद्मावती से विवाह कर लेते हैं।
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